अमृत लाल गुप्ता भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार का एक नारा कभी आसमान की बुलंदी पर गूंजता था मध्य प्रदेश अजब है गजब है वाकई में इस बात को सरकार प्रशासन अधिकारी बड़ी शिद्दत के साथ लगनशील हो कर चरितार्थ कर रहे हैं।
सूत्रों की जानकारी अनुसार आज मध्य प्रदेश में पान से लेकर किराना दुकान एवं नाश्ता घर खोलने के लिए सरकारी नियम सरकारी कार्यालय की व्यवस्था फ़ाइल एनओसी पेपर एग्रीमेंट ओर भी कई तरह की ड्यूटी फीस की कार्यवाही से गुजरने एवं विभाग की चौखट पर मजबूर हो जाता है।
परन्तु इसके विपरीत झोलाछाप डॉक्टर झोलाछाप नर्सिंग कॉलेज की भरमार एक बात पर बल देती हैं कि आमजन के लिए रोजमर्रा की जरूरत के लिए कठोर से कठोरतम नियम हैं परंतु जब बात आमजन के जीवन की आती हैं तो मध्य प्रदेश की हर गली हर रास्ते पर उनकी मौत की कत्लगाह सारे नियम को ताक पर रख खुली हुई मिल जाती हैं।
इसकी जिम्मेदारी किसकी है हादसे होंगे हादसे होते रहेंगे हादसों की प्रक्रिया निरंतर जारी रहेगी उस जांच के आदेश के साथ जो कभी भी अपने मुकाम तक नहीं पहुंचती एक आदेश के बाद दूसरे आदेश की प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाती हैं परंतु सरकार प्रशासन विभाग अधिकारी आमजन को सिर्फ और सिर्फ कत्लगाह के रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर फिर एक आदेश की खानापूर्ति या कहे तैयारी शुरू करने में ही सक्षम अपने को साबित करने में लगे रहते है।
चर्चा आम आदमी के बीच अब आम हो गई हैं कि अपने जीवन को बचाने के लिए सरकारी अस्पताल की कमी और अधूरी व्यवस्था से संघर्ष करे या अपनी जमीन जायजाद को बेच कर या सूदखोर के चंगुल में फंस कर अपनी हद से बाहर जाकर फाइव स्टार होटल की तरह बने अस्पताल में इलाज के लिए मजबूर हो जाते है,
जो इस तरह से मजबूर रहते है जिनके लिए संघर्ष पथ ही आख़िरी रास्ता है वो आमजन क्या करे सरकार प्रशासन विभाग अधिकारियों की लापरवाही से बने कत्लेगाह में जाने पर मजबूर होता है और फिर यही गरीब तबका फिर एक नई जांच आदेश की प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करता है।
मध्य प्रदेश में अब लगता है कि वादों की जनसंख्या के आगे गरीब तबके की जनसंख्या की आवश्यकता नगण्य हो गई है सरकार प्रशासन और व्यवस्था के भागीरथी को झोलाछाप डॉक्टर झोलाछाप नर्सिंग कॉलेज की भरमार दिखाई नहीं देती हैं। फुर्सत नहीं केबिन कुर्सी का रुतबा कम ना हो बुनियादी ढांचा बनाने की सोच आज भ्रष्टाचार की आस्था के आगे क्या कभी पूरी हो सकती हैं।
यह यक्ष प्रश्न हमेशा से बना रहेगा, परन्तु इसके जवाब कभी नहीं मिलेंगे इच्छा-शक्ति का ना होना बुनियादी ढांचे की तरफ ईमानदारी से नहीं देखना कितने ही अनंत सवाल आजादी के 75 वर्ष क्यों ना बीत गए हो आगे भी देश अपनी ना जाने कितनी जयंती बना ले लेकिन यक्ष प्रश्न हमेशा से बुनियादी ढांचा स्वस्थ सुविधा से वंचित रहेगा और सरकार एक नारा बुनकर समाज की जरूरत वोटबैंक से पूरी करता रहेगा।
इन वादों से क्या कभी आमजन के लिए खुले कत्लेगाह बंद हो सकते है। आमजन के लिए एक बात सटीकता से उनके जीवन पर काफी है कि स्वछंद आसमान पर तेरे लिए वादों की कमी नहीं होगी अरमानों की सेज पर गुलाब की पंखुड़ी कम ना होगी परन्तु मेरे वादों पर यकीन करना तेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती होगी।