इंदौर हाईकोर्ट का फैसला: सड़क चौड़ीकरण के लिए संपत्ति का हिस्सा हटाने और उचित मुआवजे का आदेश - Dainik Dhruv Vani

इंदौर हाईकोर्ट का फैसला: सड़क चौड़ीकरण के लिए संपत्ति का हिस्सा हटाने और उचित मुआवजे का आदेश

हाईकोर्ट

बड़वाह। 28 फ़रवरी 2025 को अपने फैसले में इंदौर हाईकोर्ट ने सड़क चौड़ीकरण के लिए एक नागरिक की संपत्ति के एक हिस्से को हटाने के संबंध में नगर पालिका परिषद द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका का निस्तारण किया।

यह आदेश कानूनी अधिकारों और शासकीय कार्यों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। मामले में याचिकाकर्ता, दिनेश कुमार विजयवर्गीय, ने अपनी संपत्ति के एक हिस्से को हटाने के लिए 21 फरवरी 2025 को नगर पालिका परिषद द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी थी।

उनका कहना था कि वह अपनी संपत्ति के वैध मालिक हैं और पिछले 70 वर्षों से उसमें निवास कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उन्हें ‘अतिक्रमणकारी’ के रूप में गलत तरीके से पेश किया गया है, जबकि उन्होंने किसी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण नहीं किया है।

नगर पालिका परिषद का रुख

इस मामले में नगर पालिका परिषद ने दलील दी कि याचिकाकर्ता की संपत्ति सड़क चौड़ीकरण के लिए आवश्यक है और इसके लिए उनकी संपत्ति का कुछ हिस्सा कब्जे में लिया जा सकता है। परिषद ने यह भी कहा कि सड़क का विकास और नागरिक सुविधाओं का विस्तार सरकार की प्राथमिकता है, और इसके लिए यह कदम उठाना जरूरी है।

परिषद ने हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए यह तर्क दिया कि सड़क चौड़ीकरण के लिए किसी भी संपत्ति का अधिग्रहण कानूनी रूप से संभव है, चाहे वह संपत्ति ‘अतिक्रमण’ के रूप में दिखाया जाए। हाईकोर्ट ने नगर पालिका परिषद की दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि सड़क चौड़ीकरण के लिए संबंधित विभाग को याचिकाकर्ता की संपत्ति का कुछ हिस्सा कब्जे में लेने का कानूनी अधिकार है।

हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को इसके लिए उचित मुआवजा मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देशित किया कि याचिकाकर्ता इस मामले में जिला न्यायालय में अपील कर सकते हैं, जैसा कि 1961 के नगरपालिका अधिनियम की धारा 303 में प्रावधान किया गया है।

नगर पालिका परिषद की भूमिका इस मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके पास सड़क चौड़ीकरण और विकास कार्यों को प्रभावी रूप से लागू करने की जिम्मेदारी है। हालांकि, इसे सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि नागरिकों के कानूनी अधिकारों की रक्षा हो और उन्हें मुआवजा देने की उचित प्रक्रिया पूरी की जाए।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि नागरिकों को उनके अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालयों का सहारा लेने का अवसर मिलना चाहिए। यह मामला नागरिकों के अधिकारों और सरकारी कार्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती को उजागर करता है।

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जहां सरकार सड़क चौड़ीकरण जैसे विकास कार्यों को प्राथमिकता देती है, वहीं नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों और मुआवजे की उचित प्रक्रिया की गारंटी भी दी जाती है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में न तो याचिकाकर्ता की स्थिति को पूरी तरह से स्वीकार किया और न ही सरकारी पक्ष को पूरी तरह से हकदार ठहराया, बल्कि उन्होंने कानूनी उपचार की प्रक्रिया को अपनाने का रास्ता दिखाया।