बड़वाह। इंदौर उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में नगर पालिका बड़वाह को निर्देश दिया है कि वह सड़क चौड़ीकरण के नाम पर किसी भी नागरिक के घर को ध्वस्त करने से पहले उचित मुआवजा सुनिश्चित करे। यह आदेश उस याचिका पर आया है, जिसे बड़वाह निवासी दिनेश विजयवर्गीय ने अपने घर को गिराने के आदेश के खिलाफ दायर किया था।
आखिर क्या था मामला?
याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर कर नगर पालिका द्वारा जारी 05.02.2024 के नोटिस को रद्द करने और अपने घर को न गिराने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह उस भूमि का पंजीकृत मालिक है, जिसे सड़क चौड़ीकरण के लिए अधिग्रहित किया जा रहा है।
हाई कोर्ट की कार्यवाही में क्या हुआ?
याचिकाकर्ता विजयवर्गीय के वकील ने तर्क दिया हैं कि वह सड़क चौड़ीकरण के पक्ष में हैं, लेकिन बिना मुआवजा दिए घर तोड़ना अन्यायपूर्ण होगा। उन्होंने बिक्री विलेख की प्रमाणित प्रति भी प्रस्तुत की, जिससे यह साबित हुआ कि विवादित भूमि उनके नाम पर पंजीकृत है।
वहीं, नगर पालिका बड़वाह की ओर से वकील ने उच्च न्यायालय को बताया कि इस मामले में पहले भी 2016 में एक आदेश दिया जा चुका है, लेकिन याचिकाकर्ता ने पिछले 9 वर्षों में इसे चुनौती नहीं दी। इसलिए, अब इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।
अदालत ने दिया ये फैसला
सभी तथ्यों और तर्कों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि
- 20 फरवरी 2025 को सभी पक्षकारों की उपस्थिति में नया सीमांकन (डिमार्केशन) किया जाए।
- यदि सीमांकन में यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता की संपत्ति का कोई हिस्सा अधिग्रहण किया जाना है, तो उसे उचित मुआवजा दिया जाए।
- यदि याचिकाकर्ता सीमांकन से संतुष्ट नहीं होता है, तो वह 7 दिनों के भीतर इसे चुनौती दे सकता है।
इंदौर हाई कोर्ट के फैसले का असर
इस फैसले से उन नागरिकों को राहत मिलेगी, जिनकी संपत्ति को सड़क चौड़ीकरण या अन्य विकास परियोजनाओं के तहत अधिग्रहित किया जाता है। अब प्रशासन बिना उचित मुआवजा दिए किसी की संपत्ति पर कार्यवाही नहीं कर सकेगा।