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भोपाल. कोरोना वायरस को लेकर अभी तक कोई दवाई नहीं बन सकी है। हालांकि दुनिया के बहुत से देश कोरोना की वैक्सीन बनाने मे लगे हैं पर अब तक पूरी तरह से सफलता हासिल नहीं हुई है।
वहीं अगर बात करें भारत की तो यहां अस्पतालों में कोरोना के इलाज के दौरान अन्य फ्लू में दी जाने वाली दवाईयां इस्तेमाल की जा रही हैं। इस समय हर देश बस यही प्रयास कर रहा है कि कैसे इस बीमारी को रोका जाए ऐसे में एक स्टडी से यह बात निकलकर सामने आई है,
कि बच्चों में टीबी यानि ट्यूबरक्लोसिस को फैलने से रोकने के लिए बचपन में लगने वाले बीसीजी के टीके कोरोना के संक्रमण को कम करने के साथ ही मौत के आंकडों को रोकने में भी मददगार साबित हो रहे हैं। ये स्टडी करने वालों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के वैज्ञानिक भी शामिल हैं।
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बीसीजी के टीके कोरोना की रोकथाम में कितने कारगार हैं इसे जांचने के लिए एक सर्वे होगा जिसमें देश के 6 शहर शामिल हैं। इन शहरों की सूची में भोपाल सहित जोधपुर, दिल्ली, मुबई, अहमदाबाद और चेन्नई है। पहली बार देश में इतने बडे स्तर पर अध्ययन किया जाएगा।
यह अध्ययन 60 साल से 95 साल के बुर्जुगों पर किया जाएगा। बीसीजी के टीके इस उम्र के 725 बुजुर्गों को लगाए जाएंगे। यह वो बुर्जुग हैं जिन्हे बचपन में बीसीजी के टीके नहीं लगे होंगे। बता दें कि भारत में 1949 से बच्चों का बीसीजी के टीके लगने शुरू हुए थे।
साल 2019 तक की बात करें तो 26 मिलियन भारतीय बच्चों में से कम से कम 97% को यह टीके लग चुके हैं। यह टीका बचपन में होने वाली टीबी और मेनिन्जाइटिस से बचाता है, लेकिन अडल्ट पल्मोनरी टीबी से सिक्योरिटी नहीं देता,
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जिसकी वजह से कई देशों ने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया था। अब देखना होगा कि क्या ये टीके को2रोना महामारी से बचने के लिए भी वास्तविक रूप से कारगर हैं या नहीं, जिसे लेकर जल्द ही अध्ययन किया जाएगा।
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