क्या है कोरोना का पीक?, जिसका वैज्ञानिको को इंतज़ार, भारत में कब आएगी मामलों में गिरावट

नई दिल्ली.भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़कर 30 लाख का आंकड़ा पार कर चुके हैं। राहत की बात यह है कि 22.80 लाख लोग स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं। रिकवरी रेट 74.9% तक पहुंच गया है।

वहीं मॉर्टलिटी रेट यानी मृत्यु दर गिरकर 1.9% तक आ गया है। बढ़ते रिकवरी रेट के साथ वैज्ञानिकों के बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि क्या भारत में कोरोना का पीक आ गया है?

सबसे पहले, यह पीक क्या होता है

महामारी के दौर में अधिकारी और वैज्ञानिक अक्सर पीक की बात करते हैं। इसका मतलब है नए मामलों में स्थिरता आ गई है। अब नए मामलों का ग्राफ और ऊपर नहीं जाने वाला। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक जब कोई संक्रमण अनियंत्रित तरीके से बढ़ता है तो हर दिन पिछले दिन से ज्यादा केस आते हैं और मौतों की संख्या भी बढ़ती जाती है।

यह स्थिति हमेशा तो नहीं रहने वाली। कहीं न कहीं जाकर सिलसिला थमेगा ही। हर दिन मिलने वाले नए केस की संख्या पिछले दिन के बराबर या उससे कम होने लगती है। इसे ही महामारी से जुड़ी शब्दावली में पीक कहा जाता है, लेकिन यह नियमित होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि एकाध दिन नए मामले कम आए तो मान लिया कि पीक आ गया है।

भारत को ही लो, कोरोनावायरस के केसों की संख्या 100 से एक लाख तक पहुंचने में 65 दिन का समय लगा। उसके बाद सिर्फ 59 दिन में केस बढ़कर दस लाख हो गए। अब यदि पीक को समझना है तो नए केस को समझना होगा। 15 अगस्त के मुकाबले 16 और 17 अगस्त को नए मामलों में कमी आई, लेकिन 19 अगस्त को फिर बढ़ गए। इसलिए इसे पीक नहीं कह सकते।

भले ही नए केसेस का कर्व फ्लैट हो रहा हो, महामारी को अपने पीक पर नहीं माना जा सकता। इसका एक और महत्वपूर्ण पहलू है एक्टिव केस की बढ़ती संख्या। जब तक रिकवर करने वाले या मरने वाले मरीजों की कुल संख्या निश्चित पीरियड तक ज्यादा नहीं रहती, तब तक एक्टिव केस कम नहीं होने वाले। इसका कर्व फ्लैट होना और फिर गिरना महत्वपूर्ण है।

भारत में पीक को लेकर क्या कह रहे हैं एनालिस्ट?

कुछ नहीं। कोई भी एनालिस्ट कुछ भी पुख्ता कहने को तैयार नहीं हैं। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ने रिकवरी रेट को आधार बनाया और कहा कि जब भारत में रिकवरी रेट 75% को पार कर जाएगा, तब शायद हम पीक की ओर बढ़ते हुए नजर आएं। हालांकि, यह भी दावे के साथ नहीं कह सकते, क्योंकि अमेरिका में दो बार पीक गुजर चुका है।

वहीं, प्रिटिविटी और टाइम्स नेटवर्क की स्टडी में प्रतिशत बेस्ड मॉडल्स, टाइम सीरीज मॉडल्स और एसईआरआर मॉडल्स को बेस बनाया और यह बताया कि जब एक्टिव केस की संख्या न्यूनतम 7.80 लाख और अधिकतम 9.38 लाख होगी, तब भारत में पीक आ जाएगा। यह सितंबर में कभी भी आ सकता है। हालांकि, इस दावे को एम्स के विशेषज्ञों ने खारिज कर दिया है।

एसबीआई की रिपोर्ट हो या प्रिटिविटी की रिपोर्ट, सबने अब तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही दुनिया के अन्य देशों, जहां कोविड-19 केसों में गिरावट दर्ज हुई है, वहां के पीक का अध्ययन भी किया है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील में 69% रिकवरी रेट पर पीक आ गया जबकि सऊदी अरब में 64.9% रिकवरी रेट पर पीक आ गया था। वहीं, मलेशिया में पीक 79% रिकवरी रेट के बाद आया।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट के. श्रीनाथ रेड्डी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि 15 सितंबर के आसपास भारत में कोरोना का पीक आ जाएगा। उन्होंने कहा कि वैसे तो यह परिस्थिति आनी ही नहीं चाहिए थी, लेकिन अब भी यदि मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग आदि का सख्ती से पालन किया तो सितंबर से नए केसों की संख्या में स्थिरता या गिरावट देखी जा सकती है।

राज्यों में कब आएगा पीक?

सभी एनालिस्ट कह रहे हैं कि पूरे भारत में पीक एक साथ नहीं आने वाला। कुछ राज्यों में यह पीक आ चुका है और कुछ राज्यों में इसके लिए इंतजार करना होगा। एसबीआई रिसर्च की स्टडी 27 राज्यों पर केंद्रित थी। इसके अनुसार दिल्ली, तमिलनाडु, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और त्रिपुरा यानी पांच राज्यों में ही कोरोना अपना पीक क्रॉस कर गया है।

महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पीक काफी दूर है। पॉजिटिविटी रेट और प्रति दस लाख टेस्ट का एनालिसिस करें तो महाराष्ट्र, तेलंगाना, बिहार और पश्चिम बंगाल में भले ही पॉजिटिविटी रेट ज्यादा हो, टेस्ट प्रति दस लाख आबादी काफी कम है। जब तक टेस्ट की संख्या नहीं बढ़ेगी, तब तक स्थिति स्पष्ट नहीं होगी।

तेजी से बढ़ रहे हैं पॉजिटिव मरीज

भारत में 100 से 1 लाख केस पहुंचने में 65 दिन का समय लगा। जाहिर है कि इस दौरान लॉकडाउन के सख्त नियम लागू थे। लेकिन अनलॉक शुरू होते ही केस लगातार बढ़ते चले गए। सिर्फ 59 दिन में भारत एक लाख से दस लाख केस तक पहुंच गया। भारत में इस समय 22 दिन में केस डबल हो रहे हैं, जो अर्जेंटीना और यूएस जैसे देशों के बराबर है। हालांकि, दुनिया में केस डबलिंग रेट अब 43 दिन हो गया है।

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