सचमुच श्रीकृष्ण से सीख लेना बहुत ही मुश्किल है। उन्होंने जो किया वह कोई साधारण मानव नहीं कर सकता,यहां हम जो बातें बताएंगे वह उनके लिए जो साधारण मानव है। असाधारण के लिए तो हम भी कुछ नहीं बता सकते। तो आओ हम उन लोगों को बताते हैं मैनेजमेंट के 10 गुण जो असाधारण कॉलेज में पढ़कर खुद को असाधारण ही समझते हैं।
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मैनेजर या बॉस : कई मैनेजर ऐसे हैं जो खुद को बॉस समझते हैं। कई लोग ऐसा सोचते हैं कि कोई हमें हमारा बॉस बनकर तो कोई काम नहीं करवा सकता। सचमुच लोगों को और उनकी सोच को मैनेज करना बहुत मुश्किल है। बहुत से ऐसे दफ्तर हैं जहां बॉस भी नहीं रहते, वहां तो तानाशाह रहते हैं जो कंपनी की लुटिया डूबो देते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की बात हर कोई मानता था क्योंकि वे किसी के बॉस नहीं थे और ना ही वे तानाशाह थे। वे जब द्वारिका में राजा थे तो उन्होंने कभी राजा जैसा व्यवहार नहीं किया। वे तो लोगों के मित्र, सलाहकार और सहयोगी थे। उन्होंने कभी भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया। टीम वर्क किया तभी तो पांडव जीत गए।
भगवान कृष्ण ने बेटा, भाई, पत्नी, पिता के साथ मित्र की जो भूमिका निभाई, वह आज भी संपूर्ण चराचर के लिए मार्गदर्शक बनी हुई है।
2. व्यापक सोच : यदि आपके पास बस किताबी, स्कूली या कॉलेज का ही रटा-रटाया ज्ञान है तो आप वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा कि आपको एमबीए की क्लॉस में सिखाया गया है। जीवन तो बहता पानी है। पल-प्रतिपल ज्ञान बदल रहा है लोग बदल रहे हैं उनकी सोच भी।
कई बार परिस्थितियां हमें सिखाती हैं। इसलिए अपने ज्ञान और अनुभव दोनों का ही उपयोग करते हुए व्यापाक सोच को अपनाना चाहिए। श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप जो भी कर रहे हैं, उसे लेकर आपका विजन व्यापक होना चाहिए। पहले अच्छी तरह से सोच और समझ लें फिर कोई कार्य या व्यवहार करें।
दूर तक देखने और सोचने की आदत डालें। जैसा कि श्रीकृष्ण समझते थे कि कोई क्या समझ रहा है। भगवान श्रीकृष्ण 64 कलाओं में निपुण थे।
3. निष्काम कर्म करो : श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म करना हमारे हाथ में है लेकिन उसका क्या परिणाम होगा यह हमारे हाथ में नहीं है। यदि आप 100 परसेंट कर्म नहीं करते हैं तो फिर 100 परसेंट फल की आशा भी न करें। जो व्यक्ति यह सोचकर कर्म करता है कि मुझे अपना पूरा 100 परसेंट देना है वही मनचाहा परिणाम भी पा सकता है।
ऐसा कोई कर्म नहीं है जिसका फल नहीं मिलता हो। आज नहीं मिलेगा तो जीवन के किसी और मोड़ पर मिलेगा। परिणाम की चिंता से कर्म नहीं करना अकर्मण्यता है इसलिए निष्काम कम करो और फल उस प्रभु की इच्छा पर छोड़ दो। निष्काम कर्म करने की भावना रखने से ही व्यक्ति अतीत और भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान पर ही फोकस करता है। अपनी ड्यूटी निभाने का सबसे अच्छा तरीका निष्काम कर्म ही है।
4. धर्म के साथ रहो : जीवन में कितनी ही कठिनाइयां आए लेकिन आप धर्म का साथ न छोड़ें, क्योंकि हो सकता है कि अधर्म के साथ रहकर आप तात्कालिक लाभ प्राप्त कर सकते हो लेकिन जीवन के किसी भी मोड़ पर आपको इसका भुगतान करना ही होगा।
क्योंकि श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं हे अर्जुन तुझे देखने वाले आकाश में देवता भी है और राक्षस भी। लेकिन तू खुद को देख और समझ। खुद के समक्ष धर्मपरायण बन। यदि तू धर्म की रक्षा करेगा तो धर्म तेरी रक्षा करेगा।
अत: यदि आपको जीवन में निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना है तो असत्य का साथ कभी न दें, बल्कि सत्य का साथ देते हुए अपना रास्ता खुद तय करें। सत्य के साथ रहने से ही पॉजिटिव एटिट्यूड निर्मित होता है। दरअसल, दो तरह की कार्य संकृति है।
पहली दैवीय और दूसरी आसुरी। दैवीय कार्य संस्कृति में लोगों को निर्भिक बनाकर उन्हें कार्य कि स्वतंत्रता दी जाती है। उनकी योग्यता को अपडेट किया जाता है और उनके जीवन के सुख दुख में भागिदार बनते हैं। वहीं, दूसरी ओर आसुरी कार्य संकृति में लोगों को मानसिक रूप से दबाया जाता है।
हर बात में उनकी गलतियां ढूंढ कर उन्हें नीचा दिखाया जाता है, लोगों में भय और भ्रम निर्मित कर दिया जाता है जिसके चलते हर समय छल, हताशा, निराशा और स्वार्थ का भाव ही विद्यमान रहता है।