कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार आत्मनिर्भर भारत अभियान को रेखांकित किया है। इस दौरान उन्होंने उद्योग-व्यापार जगत के लोगों को इसके लिए प्रेरित भी किया है कि वे हर उस चीज का देश में उत्पादन करने के लिए आगे आएं जिसे आयात किया जाता है। मुसीबत की दवा सिर्फ मजबूती को बताते हुए उन्होंने ऐसे उत्पादों का देश में केवल निर्माण करने की ही बात नहीं कही, बल्कि उनका निर्यातक बनने की भी जरूरत जताई।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए उन्होंने जो पांच चीजें महत्वपूर्ण बताईं वे हैं-इरादा (इंटेंट), समावेशन (इनक्लूजन), निवेश (इन्वेस्टमेंट), आधारभूत ढांचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) और नवप्रवर्तन (इनोवेशन)। नि:संदेह कोरोना संकट से पस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को सहारा देने का जिम्मा देश के उद्यमियों पर है, मगर यह भी देखना होगा कि सरकार इन उद्यमियों के साथ ही विदेशी निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए कैसी नीतियां बनाती है?
भारत का विशाल मध्य वर्ग देसी-विदेशी निवेशकों को आकर्षित करता है
अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को दशकों से यह बताया जा रहा है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है। यह एक सच्चाई है। भारत का विशाल मध्य वर्ग देसी-विदेशी निवेशकों को आकर्षित भी करता है, लेकिन चीन की तुलना में भारत में आया विदेशी निवेश ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसा है। कोरोना वायरस के चलते चीन के विरोध में जो माहौल बना है उसके चलते बहुराष्ट्रीय कंपनियां वहां से निकलना चाह रही हैं। इसे भारत अपने लिए एक अवसर के तौर पर देख रहा है।
विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए चीन जैसा आधारभूत ढांचा भारत में नहीं है
यदि इस अवसर को भुनाया जा सके तो आत्मनिर्भर भारत अभियान को तेजी दी जा सकती है। यह सुनने में अच्छा लगता है कि चीन में काम कर रहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आने का मन बना रही हैं, लेकिन क्या हमारे यहां का आधारभूत ढांचा, उद्योगों के प्रति माहौल, नौकरशाही का रवैया और श्रम नीतियां ऐसी हैं कि वे सचमुच भारत को पसंदीदा ठिकाने के तौर पर देखें? इस बारे में भारतीय उद्योगपतियों से बात की जाए तो वे उत्साहित नहीं दिखते। चीन ने जैसे आधारभूत ढांचे का निर्माण अपने विशेष आर्थिक जोन यानी एसईजेड में किया और जिसके बलबूते वह विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने में सफल रहा वैसी स्थिति भारत में नहीं है।
चीन ने उद्योगों के अनुकूल विश्व स्तरीय ढांचा खड़ा किया
आज से लगभग 40-45 वर्ष पूर्व चीन की आर्थिक व्यवस्था करीब-करीब भारत जैसी ही थी, लेकिन 1970-80 के दशक में चीन ने एसईजेड बनाने का फैसला किया। उद्यमियों को मनचाही सुविधाएं देने वाले ये एसईजेड चीन की चमत्कारिक प्रगति में सहायक बने और वह दुनिया का कारखाना बन गया। चीन ने उद्योगों के अनुकूल जो ढांचा खड़ा किया वह केवल विश्व स्तरीय ही नहीं था, बल्कि वैसा ढांचा अन्य कहीं था ही नहीं। एक तरह से आनन-फानन खड़े किए गए इस ढांचे को देखकर अमेरिका सहित अन्य विकसित देश अचंभित रह गए और उनकी कंपनियों ने चीन में बड़े पैमाने पर निवेश किया।
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भारत का एसईजेड विदेशी निवेशकों को अधिक आकर्षित नहीं कर सका
कोरोना के पहले यदि कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी अपना नया कारखाना लगाना चाहती थी तो वह चीन का रुख करती थी। चीन में एसईजेड की सफलता देखकर भारत में भी मनमोहन सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में एसईजेड बनाने और उनके जरिये विदेशी निवेश आकर्षित करने की पहल की। भारत में वे बने भी, पर लालफीताशाही, पक्षपात और जमीन अधिग्रहण में मनमानी के चलते वे ढंग से स्थापित नहीं हो सके। इन एसईजेड में न के बराबर निवेश आया।
भारत के एसईजेड में श्रमिक भी काम करने को तैयार नहीं थे
हमारे एसईजेड एक तो बडे शहरों से दूर थे और दूसरे वहां मजबूत आधारभूत ढांचे का निर्माण भी नहीं किया जा सका। इसके चलते इंजीनियरों, मैनेजरों की बात तो छोड़िए, श्रमिक भी वहां काम करने को तैयार नहीं थे। लगता है हमारे नीति-नियंता भूल गए कि कामगारों को रहने के लिए बेहतर माहौल ही नहीं, बल्कि अच्छे स्कूल और अस्पताल भी चाहिए। दुर्भाग्य से अपने बड़े शहरों के कमजोर आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने की भी पहल नहीं की गई।
कानून में मनमाने तरीके से फेरबदल के चलते विदेशी निवेशकों ने भारत से मुंह मोड़ लिया
चूंकि भारत में स्थापित एसईजेड ढंग से काम नहीं कर सके इसलिए वहां नया निवेश भी नहीं आया। चीन के मुकाबले भारतीय उद्योगों की कमजोर उत्पादकता भी एक समस्या बनी। विदेशी निवेशकों ने इसलिए भी भारत से मुंह मोड़ लिया, क्योंकि एक तो मनमोहन सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में नीतिगत पंगुता से घिर गई और दूसरे, वह पिछली तिथि से लागू होने वाला टैक्स लेकर आ गई। इसके चलते विदेशी निवेशकों के मन में यह धारणा घर कर गई कि भारत की सरकारें कभी भी किसी कानून में मनमाने तरीके से फेरबदल कर सकती हैं।
विदेशी निवेशकों को चीन के एसईजेड में लागू पारदर्शी कानून बेहतर लगे
उन्हें चीन के एसईजेड में लागू पारदर्शी कानून बेहतर लगे। इसके बावजूद चूंकि चीन लोकतांत्रिक देश नहीं इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियां वहां अत्यधिक निवेश के पक्ष में नहीं रहीं। उन्होंने चीन के विकल्प के तौर पर थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया और ताइवान आदि का चयन किया। इसके बाद श्रीलंका और बांग्लादेश भी उनकी निगाह में आए। पिछले कुछ समय से बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूर्वी यूरोप के देशों में भी निवेश कर रही हैं, क्योंकि वहां श्रम की कीमत चीन के लगभग बराबर है।
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विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए भारत को अधकचरे एसईजेड को दुरुस्त करना होगा
यदि हमारे नीति नियंता विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहते हैं तो उन्हें केवल अधकचरे एसईजेड ही दुरुस्त नहीं करने होंगे, बल्कि श्रम नीतियों को भी ठीक करना होगा, जमीन अधिग्रहण की बाधाओं को दूर करना होगा और शहरी आधारभूत ढांचे को सुधारने के साथ ही नौकरशाही के रवैये को भी बदलना होगा।
मोदी सरकार ने विदेशी निवेशकों की मुश्किलों को आसान बनाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए
मोदी सरकार ने अभी तक इन मुश्किलों को आसान बनाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। उसने दावा जरूर किया है कि चीन से निकलने को तैयार 600 कंपनियों से बात जारी है, पर इसके सार्थक नतीजों की उम्मीद कम ही है। इसका कारण यह है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान में जो घोषणाएं की गई हैं उन पर अमल का इंतजार है।
चीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने यहां बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेगा
यह ठीक है कि विकसित देश अभी चीन पर कोरोना फैलाने की तोहमत मढ़ रहे हैं और उनकी कंपनियां वहां से निकलने की बात कर रही हैं, पर आगे स्थितियां बदल भी सकती हैं। चीन अब एक ताकतवर देश है। वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने यहां बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। चूंकि वह जैसा आधारभूत ढांचा विदेशी निवेशकों को उपलब्ध कराता है वैसा अन्य कहीं आसानी से मौजूद नहीं ऐसे में यह संभव है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां कुछ समय बाद अपना विचार बदल दें। स्पष्ट है कि भारत के पास अवसर को भुनाने के लिए ज्यादा समय नहीं है। उसे तेजी के साथ काम करना होगा।