WHO: गलत ढंग से सैंपल लेने से राजनीति तक

चीन के वुहान से शुरू हुए कोरोना वायरस ने पिछले कुछ महीनों से पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। तमाम देशों ने सच छिपाने के लिए चीन की आलोचना की, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उल्टे बीजिंग की सराहना करते हुए उसकी तारीफों के पुल बांध दिए। इस वजह से डब्ल्यूएचओ भी निशाने पर आ गया।

खासतौर से अमेरिका ने खुलकर इस वैश्विक संस्था की आलोचना की। अमेरिका ने उस पर चीन के साथ मिलकर काम करने के आरोप लगाए और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ से पूरी तरह नाता तोड़ने का एलान कर दिया है।

हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब डब्ल्यूएचओ को आलोचनाएं झेलनी पड़ी हों। ऐसे कई मौके आए जब इस वैश्विक संस्था की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठीं। कभी बच्चों के गलत तरीके से सैंपल लेने पर, तो कभी अफ्रीका में एड्स फैलाने जैसे आरोप भी इस पर लगते रहे। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ विवादों के बारे में…

दिन में तीन बार बच्चों के रक्त के नमूने लिए

बात 1960 से 1970 के बीच की है। युगांडा के वेस्ट नाइल में शोधकर्ताओं को एक प्रयोग करने की अनुमति दे दी गई। इसके तहत दिन में तीन बार बच्चों के रक्त का सैंपल लिया जाता था। कहा गया कि यह शोध स्थानीय बीमारी को लेकर हो रहा है, जिसकी वजह से बच्चों में मोनोन्यूक्लिओसिस होने का खतरा बढ़ जाता है। मगर इस दौरान आरोप लगे कि दरअसल शोधकर्ता बच्चों को संक्रमित पोलियो वैक्सीन दे रहे हैं और उनकी एंटीबॉडी का अध्ययन कर रहे हैं। 1960 से 73 के बीच करीब 45 हजार बच्चों पर ये टेस्ट हुए।

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अफ्रीका में एचआईवी और इबोला को लेकर परीक्षण 

डॉक्टर हिलेरी कॉपरोव्हस्की नाम के शख्स पर यह आरोप लगे कि उसने एचआईवी और इबोला पर अध्ययन करने के दौरान अफ्रीकी नागरिकों को संक्रमित किया। नकली पोलियो की वैक्सीन के बहाने डॉक्टर हिलेरी ने ऐसा किया। एक अनुमान के मुताबिक 1954 से 57 के बीच लाखों अफ्रीकियों को संक्रमित किया गया। हालांकि इस तथ्य का खंडन किया जाता रहा है। मगर साथ ही यह भी माना गया कि डब्ल्यूएचओ को शुरुआत से इस बारे में जानकारी थी।

इबोला पर आंख मूंदने का आरोप

 पश्चिम अफ्रीका में 2014 के दौरान इबोला वायरस ने जानलेवा रूप धारण किया। इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ पर आंख मूंदने का आरोप लगा। लालफीताशाही, उचित आर्थिक मदद न करना और क्षेत्रीय ढांचे को लेकर इस वैश्विक संगठन की खूब आलोचना हुई।

कैंसर की रिसर्च को लेकर भी उठे सवाल

 डब्ल्यूएचओ के सहायक संगठन ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ (IARC) पर गलत ढंग से शोध करने के आरोप लगे। इसके अलावा राजनीति से प्रेरित होने को लेकर भी संगठन की आलोचना हुई। ब्रिटेन के विज्ञान पत्रकार एड यंग ने एजेंसी की आलोचना करते हुए लोगों को गुमराह करने के आरोप भी लगाए।

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IARC और मोबाइल फोन

 IARC कैंसर संबंधी जानकारी उपलब्ध कराने को लेकर भी कई बार विवाद उठा। उसने कैंसर के लिए संदिग्ध कारणों वाली क्लास 2ए या 2बी सूची में मोबाइल फोन, गर्म पेय पदार्थ और सैलून में काम करने जैसी चीजों को जोड़ दिया था।

जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति को बनाया गुडविल अंबेसेडर

इंग्लिश वेबसाइट ‘द स्ट्रीट’ के मुताबिक अक्तूबर 2017 में डब्ल्यूएचओ के तत्कालीन महासचिव ने एधानोम घेब्रेयसस ने जिम्बाव्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को गैर संचारी बीमारी के खिलाफ अभियान का गुडविल अंबेसडर नियुक्त कर दिया। मानवाधिकारों को लेकर मुगाबे के खराब रिकॉर्ड को देखते हुए एजेंसी के इस कदम की काफी आलोचना हुई।

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