खलघाट हादसे के बाद भी नही जागा प्रशासन! मोरटक्का नर्मदा पुल पर गड्ढे ही गड्ढे, रैलिंग भी टूटी

मोरटक्का नर्मदा पुल हाईलाइट :- मोरटक्का नर्मदा पुल

1. अधिकतम 12 टन भार सहने की क्षमता थी

2. वर्तमान में 12 टन से अधिक भार सहन कर रहा है, पुल 900 मी. लंबा यह पुल करीब 24 पिलर पर टिका हुआ है।

3. खरगोन-खंडवा जिले को सड़क मार्ग से जोड़ने वाला मोरटक्का पुल 64 वर्ष का हो चुका है।

4. 1953 में लखनऊ की लाला उमराव सिंह एंड कंपनी ने इसका निर्माण शुरू किया था।

5. 1958 में इसका निर्माण पूर्ण हुआ। पुल की मियाद लगभग 64 साल की होती थी।

बड़वाह (अर्पित किवे) —  सन 1958 में अंग्रेजो के समय में बना (मोरटक्का नर्मदा पुल) करीब 64 वर्ष पुराना नर्मदा तट पर बना मोटर गाड़ी पुल जिसकी लम्बाई करीब 900 मीटर एवं चोड़ाई करीब 24 फिट एवं 24 खम्बो से जुड़े होने साथ आज भी यात्रियों के आवागमन का राजमार्ग बना हुआ है।

इंदौर ईचछापुर हाइवे पर नगर से 3 किलो मीटर दूर ग्राम पंचायत नावघाट खेडी एवं मोरटक्का को जोड़ने वाला नर्मदा नदी तट पर बना मोटर पुल के दोनों छोर पर लगी कमजोर रेलिंग के कारण आये दिन होने वाली वाहनों की दुर्घटना के कारण लोगो को हमेशा अपनी जान ही गवाना पड़ती है।

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अंग्रेजों के जमाने में बना मोरटक्का नर्मदा पुल आज पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है

और ना ही किसी भी प्रशासनिक विभाग के द्वारा पुल की मियाद ख़त्म होने के बावजूद भी पुल की कोई देखरेख नही की जा रही है |यहाँ तक की पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। पुल के दोनों किनारों पर लगाया गए रेलिंग कई बार टूट चुके है,| जिसे सुधरवाने की ओर विभाग द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके चलते उक्त पुल में आए दिन घटनाएं घटित हो रही है।

दोनों छोर पर मजबूत रेलिंग के साथ साथ रेडियम लगाने की भी जरूरत

पुल पर जो दोनों छोर पर रेलिंग बनी है वो पूरी तरह से कमजोर लगी हुई है | क्योकि रात्रि के समय वाहन चालको के द्वारा पुल से वाहनों को निकालते समय कमजोर रेलिंग पुल पर अन्धेरा होने कारण पूरी तरह से दिखाई नही देती है,

और जिसके कारण वाहन चालक वाहन को साइड में लगाने के चक्कर में वाहन रेलिंग को तोड़कर पानी में गिर जाता है।जिसके कारण आये दिन पुल पर दुर्घटना होती रहती है|प्रशासन के द्वारा दोनों छोर पर रात्रि में रेलिंग की अलावा रेडियम की पट्टियों का इस्तमाल करे ताकि वाहन चालक सचेत होकर वाहन चलाये ताकि होने वाली दुर्घटना से बच सके।

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मोटर पुल पर हो बिजली व्यवस्था

पुल पर लोगो की सुरक्षा के प्रति प्रशासनिक महकमा गंभीर नहीं है। रैलिंग कमजोर होने के कारण उसके पास भी खड़े होने से भी दर्शनार्थी खबराते है की कई रेलिंग टूटने से निचे ना जा गिरे। रात्रि में आस पास के लोगो के अलावा परिक्रमा वासियों का पैदल एवं हजारो वाहनों का पुल से गुजरना होता है। उसके बावजूद भीं पुल पर ना तो कोई विधुत व्यवस्था है। पुल पर संकेतक भी नहीं लगे हैं।

लगातार गुजरती है ओवरलोड गाड़ियां

इंदौर व महाराष्ट जाने के एक मात्र एक ही पुल है। समय रहते यहां पर नए पुल निर्माण की ओर कोई ध्यान नहीं किया गया तो इंदौर महाराष्ट राजमार्ग कभी भी मार्ग बंद हो सकता है। इस पुल का निर्माण अंग्रेजों के शासन काल में हुआ था, उस समय जरूरी सामानों को लाने ले जाने के लिए कोई रास्ता नहीं था।

नदी पर पानी होने के कारण बरसात के चार माह पूरी तरह से सपंर्क टूटा रहता था। इसी को ध्यान में रखकर इस पुल का निर्माण किया गया था।75वर्ष गुजरने के बाद भी पुल की स्थिति सुधारी नहीं गई। अधिक बारिश होने पर पुल और से पानी बहने के कारण रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाता है।

इसके चलते बड़े व मालवाहक पुल बनाने की मांग पूर्व में भी उठ चुकी है, लेकिन आज तक पुल का निर्माण नहीं हुआ है। इस मार्ग पर इंदौर महाराष्ट बुरहानपुर खंडवा से नगर सहित के लिए भारी वाहनों का प्रतिदिन बड़े पैमाने पर आवागमन होता है।

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इसके अलावा इस मार्ग पर प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भारी वाहनों का पुल से गुजरती है। ओवरलोड वाहन गुजरने से पुल की स्थिति जर्जर होने लगा है। पुल सड़क के लेवल से काफी डाउन पर बना हुआ है, पुल पर जगह -जगह गड्ढे भी हो चुके हैं।

छोटे वाहनों की आवाजाही को देखकर पुल का निर्माण किया गया था।

ग्राम पंचायत नावघाट खेड़ी एवं ग्राम पंचायत मोरटक्का दो जिले जोड़ने के लिए नर्मदा नदी पर बना पुल अपनी उम्र पार कर चुका है।यातायात का दबाव बढ़ने और पुल संकरा होने के कारण आए दिन जाम लगने के साथ हादसे भी हो रहे हैं। नर्मदा नदी पर टू लेन पुल का निर्माण 1947 में लखनऊ के दरियावसिंह एंड कंपनी ने मात्र 25 लाख की लागत से किया था।

उस समय के छोटे वाहनों की आवाजाही को देखकर पुल का निर्माण किया गया था।इस पुल पर से 24 घंटे में गिनती के वाहन ही निकलते थे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इंदौर से लेकर इच्छापुर तक के इस मार्ग पर 202 किलोमीटर में बीओटी के अंतर्गत नासिक की अशोका कंपनी से डामरीकरण करवाया था।

शर्तों के मुताबिक सरकार ने 12 वर्षों में टोल टैक्स वसूल कर इसकी लागत का पैसा निकालने के लिए इसी कंपनी को ठेका दिया था।उज्जैन सिंहस्थ 2016 में इस कंपनी की अवधि समाप्त हो गई थी।

कभी भी धराशायी हो सकता है पुल

मोरटक्का में नर्मदा नदी पर बना पुल उम्रदराज होने से कभी भी धराशायी हो सकता है। इस मार्ग पर अब यातायात इतना अधिक हो गया है कि सैकड़ों टन के भारी 25 से 30 हजार बड़े वाहन प्रतिदिन पुल से निकलते हैं। पुल की चौड़ाई भी इतनी कम है कि आमने-सामने से दो वाहन बड़ी मुश्किल से निकलते हैं।

साइड में चलने वाले मोटरसाइकिल सवार बड़े वाहनों की चपेट में आकर अपनी जान दे देते हैं। कई बार छोटे चार पहिया वाहन भी पुल से नर्मदा नदी में गिर चुके हैं जिस में भी कई लोगों की जानें जा चुकी हैं। बार-बार लगने वाले जाम और हो रहे हादसों को देखते हुए इस पुल को फोरलेन करने की मांग लंबे समय से की जा रही है। इसके बाद भी शासन-प्रशासन द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

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